घर लौटे जब तुम ,तुमने मुझे
दरवाज़े पर इंतजार करते पाया
गले लगा कर जब तुमने आंखों में झाँका
उनकी चमक से कुछ अंदेशा लगाया
तुमने "सच " हौले से कह
अपना वो अन्दाज़ा मज़बूत किया
मेरी मुस्कुराहट पर तुमने
मुझे माथे पर चूम लिया
फिर शुरू हुआ हमारे रिश्ते का
एक नया -अनदेखा पर मासूम सा सफ़र
हर पल तुम मुझे बचाते और सँभालते
मेरे हर लडखडाते कांपते कदम पर
तुम अक़्सर मुझसे पूछते
वोह होगा .. या वोह होगी ..?
मुझे उलझन में देख यही बोलते
कि देखना , परी जैसी होगी ..
तुम जब नहीं होते मेरे करीब
मैं तुमको अपने भीतर महसूस करती
तुम आकर जब छूते मुझे तब मैं
एक सुखद हलचल महसूस करती
तुम मुझे फल न खाने पर समझाते ..
तुम मुझे गीता' के छंद सुना सुलाते ..
तुम मेरा आँचल ढलने पर सँभालते ..
और मुझे उदास देख तुम कितना हंसाते
माँ की कमी मुझे कभी न खलने देते
मुझे तुम कितनी सारी हिदाएतें देते
मेरी दवाएं तुम हमेशा याद दिलाते
हर शाम फिर मुझे सैर पर ले जाते
मुझे ऊन के बिनौले बुनने को कहते
उन्ही रंगों के कुछ सपने भी बुनते
रात में जब जब मेरी नींद टूटती
तुम मेरे फिर सोने तक जगते रहते
नामों और खिलौनों का घर पर ढेर था
खिलखिलाती तस्वीरों से हर कोना महका रखा था
तुम्हारी बेसब्री और मेरी बेचैनी बढ़ रही थी
मैं हूँ ना , मुझे ऐसे तुमने यकीन करवा रखा था
मेरी तपस्या और तुम्हारी बंदगी
आज पूरी हो गयी थी
मेरी वेदना तुम्हारे चेहरे की देख खुशी
आज कहीं गुम हो गयी थी
तुम्हारे हाथों में आज इस क्षण
हमारा अंश जीवन देख रहा था
हाँ वोही कोमल सलोना' सा ख्वाब
करवटें ले मचल रहा था
मुझे तुम्हारे इस रूप को देख
ख़ुद पर गुरूर हो रहा था ..
अब और एक अलग खुशनुमा रुख में
हमारा रिश्ता बदल रहा था ..
दरवाज़े पर इंतजार करते पाया
गले लगा कर जब तुमने आंखों में झाँका
उनकी चमक से कुछ अंदेशा लगाया
तुमने "सच " हौले से कह
अपना वो अन्दाज़ा मज़बूत किया
मेरी मुस्कुराहट पर तुमने
मुझे माथे पर चूम लिया
फिर शुरू हुआ हमारे रिश्ते का
एक नया -अनदेखा पर मासूम सा सफ़र
हर पल तुम मुझे बचाते और सँभालते
मेरे हर लडखडाते कांपते कदम पर
तुम अक़्सर मुझसे पूछते
वोह होगा .. या वोह होगी ..?
मुझे उलझन में देख यही बोलते
कि देखना , परी जैसी होगी ..
तुम जब नहीं होते मेरे करीब
मैं तुमको अपने भीतर महसूस करती
तुम आकर जब छूते मुझे तब मैं
एक सुखद हलचल महसूस करती
तुम मुझे फल न खाने पर समझाते ..
तुम मुझे गीता' के छंद सुना सुलाते ..
तुम मेरा आँचल ढलने पर सँभालते ..
और मुझे उदास देख तुम कितना हंसाते
माँ की कमी मुझे कभी न खलने देते
मुझे तुम कितनी सारी हिदाएतें देते
मेरी दवाएं तुम हमेशा याद दिलाते
हर शाम फिर मुझे सैर पर ले जाते
मुझे ऊन के बिनौले बुनने को कहते
उन्ही रंगों के कुछ सपने भी बुनते
रात में जब जब मेरी नींद टूटती
तुम मेरे फिर सोने तक जगते रहते
नामों और खिलौनों का घर पर ढेर था
खिलखिलाती तस्वीरों से हर कोना महका रखा था
तुम्हारी बेसब्री और मेरी बेचैनी बढ़ रही थी
मैं हूँ ना , मुझे ऐसे तुमने यकीन करवा रखा था
मेरी तपस्या और तुम्हारी बंदगी
आज पूरी हो गयी थी
मेरी वेदना तुम्हारे चेहरे की देख खुशी
आज कहीं गुम हो गयी थी
तुम्हारे हाथों में आज इस क्षण
हमारा अंश जीवन देख रहा था
हाँ वोही कोमल सलोना' सा ख्वाब
करवटें ले मचल रहा था
मुझे तुम्हारे इस रूप को देख
ख़ुद पर गुरूर हो रहा था ..
अब और एक अलग खुशनुमा रुख में
हमारा रिश्ता बदल रहा था ..