
हमने थक कर जब भी कहीँ सर रखा ..
वहाँ ज़मीन पथरीली थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
जहाँ भी तूफानों से बच कर पनाह ली ..
वहाँ की छत टूटी थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
खर्चने के लिए जब जेब में हाथ डाला ..
जवानी सारी गुज़र चुकी थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
और ..कुछ लिखने के लिए जब कलम उठाया ..
डायरी पूरी भर चुकी थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
वहाँ ज़मीन पथरीली थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
जहाँ भी तूफानों से बच कर पनाह ली ..
वहाँ की छत टूटी थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
खर्चने के लिए जब जेब में हाथ डाला ..
जवानी सारी गुज़र चुकी थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
और ..कुछ लिखने के लिए जब कलम उठाया ..
डायरी पूरी भर चुकी थी ..
किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..किस्मत ही कुछ ऐसी थी ..
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