Thursday, December 6, 2007

सोचो या समझो ..

पत्थर गिराया है आज तूने अहसासों के पानी में
सोचो तो गहराया दायरा, समझो तो उभरी शकल है
मश्क़ कहाँ ले जाएँ , शायर की सोच बड़ी गज़ब है
सोचो तो लफ्जों का हुजूम , समझो तो इक ग़ज़ल है ..

आफरीन जो भरते हो अहले-कलम के इन शेरो पर
सोचो तो फन बेनज़ीर, समझो तो दिल का खलल है
इंसानों की भी कल्बे हिकमत अजब है , क्या कहना
सोचो तो दो मजारें हैं, समझो तो ताज महल है..