Thursday, December 6, 2007

सोचो या समझो ..

पत्थर गिराया है आज तूने अहसासों के पानी में
सोचो तो गहराया दायरा, समझो तो उभरी शकल है
मश्क़ कहाँ ले जाएँ , शायर की सोच बड़ी गज़ब है
सोचो तो लफ्जों का हुजूम , समझो तो इक ग़ज़ल है ..

आफरीन जो भरते हो अहले-कलम के इन शेरो पर
सोचो तो फन बेनज़ीर, समझो तो दिल का खलल है
इंसानों की भी कल्बे हिकमत अजब है , क्या कहना
सोचो तो दो मजारें हैं, समझो तो ताज महल है..

5 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

सोचो तो लफ्जों का हुजूम , समझो तो इक ग़ज़ल है
सोचो तो दो मजारें हैं, समझो तो ताज महल है ....

शायरों के अस्तित्व को एक line में define कर डाला है आपने बहुत सलीके और खूबसूरती से ..और ताजमहल से आप भी एक नए अंदाज़ में मिल आयी ..ये अच्छा है.

अमिय प्रसून मल्लिक said...

अर्ज़ किया है,
"खुदाया जब भी मैंने आइना देखा,
हर वक़्त उसीका अक्श दिखा."

बहुत अच्छी लगी आपकी ये छोटी सी रचना, मगर उर्दू के जटिल शब्दों का अर्थ भी लगे हाथ लिख देती तो शायद मज़ा दुगना बटोर पाता.
उम्मीद है, आप मेरी गुजारिश पर गौर फरमायेंगी, प्रगति जी!

अमिय प्रसून मल्लिक said...

अर्ज़ किया है,
"खुदाया जब भी मैंने आइना देखा,
हर वक़्त उसीका अक्श दिखा."

बहुत अच्छी लगी आपकी ये छोटी सी रचना, मगर उर्दू के जटिल शब्दों का अर्थ भी लगे हाथ लिख देती तो शायद मज़ा दुगना बटोर पाता.
उम्मीद है, आप मेरी गुजारिश पर गौर फरमायेंगी, प्रगति जी!

Anonymous said...

क्या बात है, बेहतरीन काव्य|

डॉ.ब्रजेश शर्मा said...

hold the feelings.
very good efforts to express.
keep it up.
Dr.Brijesh Sharma