
अजनबी गलियां अपनी लगती हैं , जब वापिस आना मुमकिन हो ,
दर -दर अब क्या भटकोगे जब घर का दरवाज़ा ही बंद हो ...
मुकरर्र नहीं था साथ गुज़ारा वोह वक़्त हमारा ,
पल पल अब क्या सोचोगे जब ज़हन भूलने पर रजामंद हो ..
अनजाने में ही बसा लिए थे मैंने सपनों के कई महल,
तिनका तिनका अब क्या चुनोगे जब मुस्ताक्बिल में ही धुंध हो ..
गम भुलाने के लिए फरमाते रहें हम गज़लें कितनी ,
कतरा कतरा अब क्या लिखोगे जब डायरी के पन्ने ही चंद हो ..
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