तुम कितने दूर हो ॥
कुछ धुन्ध्लाई यादों ने जब अपना निशाँ गहरा किया ,तब अहसास हुआ की
तुम कितने दूर हो ॥
एक रात जब घर की दीवार ने अपना अनजाना रंग दिखाया तब अहसास हुआ की
तुम कितने दूर हो ॥
फुर्सत में कभी जब तुम्हारे खतों को फिर से पढ़ा ,तब अहसास हुआ की
तुम कितने दूर हो ॥
चलते -चलते मैंने मुड़कर जब तुम्हें न पाया ,तब अहसास हुआ की
तुम नहीं हो .... कहीं नहीं हो.....
1 comment:
You write very well.
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