
मेरे क़रीब से तुम ऐसे उठे ..
की अब लगता है जैसे साथ थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
सेज पर साथ देकर तुम सुबह ऐसे उठे
कि लगता है तुम उस रात थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
फिर एक दिन तुम अजनबी ऐसे हुए
जैसे दिल में कभी कोई जज्बात थे ही नहीं ...
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
लौट कर आए .. एक बार फिर तुम मेरे पास पर
तब वोह हालात थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
की अब लगता है जैसे साथ थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
सेज पर साथ देकर तुम सुबह ऐसे उठे
कि लगता है तुम उस रात थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
फिर एक दिन तुम अजनबी ऐसे हुए
जैसे दिल में कभी कोई जज्बात थे ही नहीं ...
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
लौट कर आए .. एक बार फिर तुम मेरे पास पर
तब वोह हालात थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
2 comments:
सेज पर साथ देकर तुम सुबह ऐसे उठे
कि लगता है तुम उस रात थे ही नहीं ..
सपने बटोरने के लिए वक़्त तो मिला..
पर उस मुकाम पर मेरे हाथ थे ही नहीं ..
aapke hi shabdo ke sath kahungi..tareef teri karni thi bahut magar lafz mere pass the hi nahi...
gheraai kuch yun lagi tere shabdo me,dubne ke alawa mere pass aur halat the hi nahi
"लौट कर आए .. एक बार फिर तुम मेरे पास पर
तब वोह हालात थे ही नहीं .."
कबीर ने कहा है...टूटे ते फ़िर ना जूड़े,जूड़े गांठ पड़ी जाए.
मेरा मानना है कि टूट गया अगरचे तो चांद को वापस आसमां पर कौन् टांक पाया है !!!
मानव संबंधो की आन्तरिक व्यथा और संवाद पर आपकी लेखनी लाज़वाब है.
Post a Comment