एक नए सफर और एक नई खोज के साथ
राहों में फिर , हाजिर हूँ में
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं…
राहों में फिर , हाजिर हूँ में
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं…
उलझे कई जवाबों मैं
एक सुलझा सा सवाल बन ,
ज़ाहिर हूँ मैं …
कि.., मुसाफिर हूँ मैं …
एक सुलझा सा सवाल बन ,
ज़ाहिर हूँ मैं …
कि.., मुसाफिर हूँ मैं …
चलना ही मेरा मज़हब -ओ -इमान है ..
कोई कहता है कि ,
काफिर हूँ मैं
कि.., मुसाफिर हूँ मैं …
कोई कहता है कि ,
काफिर हूँ मैं
कि.., मुसाफिर हूँ मैं …
मंजिलों का पता नहीं मुझे
चला उन पड़ावों -की ही
खातिर हूँ मैं ..
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं …
चला उन पड़ावों -की ही
खातिर हूँ मैं ..
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं …
जब साँस टूटे और
खोने हौसला लगे
बोलूँगा बस कि ..
इंसा आखिर हूँ मैं
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं …
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं …
1 comment:
aapke blog se milte hue vichaaron ka ek aur blog dikhaai diya, socha ki aapko soochit kar diya jaaye
www.muktak-ghazal.blogspot.com
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