Friday, November 2, 2007

कि.. , मुसाफिर हूँ मैं…


एक नए सफर और एक नई खोज के साथ
राहों में फिर , हाजिर हूँ में

कि.. , मुसाफिर हूँ मैं…

उलझे कई जवाबों मैं
एक सुलझा सा सवाल बन ,

ज़ाहिर हूँ मैं …
कि.., मुसाफिर हूँ मैं …

चलना ही मेरा मज़हब -ओ -इमान है ..
कोई कहता है कि ,
काफिर हूँ मैं

कि.., मुसाफिर हूँ मैं …

मंजिलों का पता नहीं मुझे
चला उन पड़ावों -की ही

खातिर हूँ मैं ..
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं …

जब साँस टूटे और
खोने हौसला लगे
बोलूँगा बस कि ..
इंसा आखिर हूँ मैं
कि.. , मुसाफिर हूँ मैं …

1 comment:

Anonymous said...

aapke blog se milte hue vichaaron ka ek aur blog dikhaai diya, socha ki aapko soochit kar diya jaaye



www.muktak-ghazal.blogspot.com