Thursday, November 1, 2007

अनचाहा इजहार ..

जानती हूँ ,मोहब्बत तुमने मुझसे बेहद की ..
इन्तहा मेरी मजबूर , पर कम ना थी ....
फर्क बस इतना था ..वह सफर ही अजीब था ..
फासले बहुत थे और लम्हे नहीं थे
कभी तुम ..तो कभी हम , 'कहते ' नहीं थे ..

फिर जुदा हो गए रास्ते बदल गए ..
जाते जाते तुम कई बार मुडे ..तुम्हें देख हम भी रुके
आज तुमने मुझे बेक़दर कह ,वह सब कुछ भुला दिया है ..
और मैंने तुम्हें नादान समझ हर वक्त याद किया है ..हर पल याद किया है ..

हाँ .. तब भी किया था ..हाँ .. अब भी किया है ..

कभी न बात करना अब हमसे तुम मोहब्बत की यारा ,
निभाई मैंने हर रस्मे उल्फत , फिर भी अनगिनत इल्जाम हैं ..

यह कैसा दौर है ज़िंदगी का मेरा ..
तकिया रहता है नम मेरा ..ख्वाब आज फिर तमाम हैं ..

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