
मुझे याद है अपना वह सफर
जिसमें वो हमसफ़र मुझे मिला था ..
बस के उस शोर और भीड़ भाड़ में भी
दिल को किसी दिल से संकेत मिला था ..
मैंने अपने बारे में बेहिचक बताया,
जब उसने मेरा नाम पूछा था .
सुना जब , हंस के यह कहा की
अरे ! मैंने तो ज़िंदगी सोचा था ..
मैंने भी उससे परिचय माँगा था
वह जाने क्यों मुकरने लगा था
मेरे खफा होने पर फिर
मुझे देख मुस्कुराने लगा था ॥?
जिसमें वो हमसफ़र मुझे मिला था ..
बस के उस शोर और भीड़ भाड़ में भी
दिल को किसी दिल से संकेत मिला था ..
मैंने अपने बारे में बेहिचक बताया,
जब उसने मेरा नाम पूछा था .
सुना जब , हंस के यह कहा की
अरे ! मैंने तो ज़िंदगी सोचा था ..
मैंने भी उससे परिचय माँगा था
वह जाने क्यों मुकरने लगा था
मेरे खफा होने पर फिर
मुझे देख मुस्कुराने लगा था ॥?
बातचीत का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ
मुझे वह सफर मंजिल सा लगने लगा
हम एक दूसरे से कितना मिलते थे .
उससे आँखें हटाना मुश्किल सा लगने लगा
कितना जादू था उसकी बातों में ..
और तहजीब ऐसी जो सबको लुभा रही थी
मैं उसके बगल मैं बैठी
अपनी किस्मत पे इतरा रही थी ..
एक रोते बच्चे को उसने गोद में बैठाया
हर एक कोशिश कर उसको शांत कराया
खांसते हुए एक बाबा को अपनी बोतल से
सारा पानी पिला कितना पुण्य कमाया ..
बस जैसे जैसे चलती जा रही थी
मैं उस अनजाने की होती जा रही थी
एक फ़ैसला मन में कुछ कर लिया था
किसी जज्बे की हिमायती हुयी जा रही थी
मेरा सफर अब खत्म हो चुका था ..
उतरी इस खयाल से की ज़रूर
पीछे से कोई आवाज़ आएगी ..
पता चाहता हूँ आपका ..कहेगा ,
..कि मुझे आपकी याद बहुत आएगी
मेरा अंदाजा ग़लत था ..
मैं थकी चाल से चलने लगी थी
धूल उड़ा कर मेरे चेहरे पे
वह बस अब बोझिल होने लगी थी
रात उसी के ख्यालों में बीती
आँखें सुबह उठी तो गीली थी
उसका चेहरा याद आ रहा था ..
दिल उसकी तरफ़ भागा जा रहा था .
फिर एक ख़बर पढी
अखबार पर जब नज़र पढी
कल एक बस में विस्फोट हुआ
मेरी आखों में जैसे अँधेरा छाया !
कल बैठे कई मित्र बने थे
आज .. सब खत्म हो चुके थे
हुलिया जो उसका उस कागज़ पे ज़िक्र हुआ था
यही जाना कि मेरा शख्स एक 'मानव -बम ' था
ले गया अपने संग कितने प्राणों को ..
अब जाना .. क्यों मुझे ज़िंदगी पुकारा था ..
उसने अपना यह बदनुमा और ज़ुल्मी पहलू
मेरी नज़रों से किस तरह बचा रखा था
मैं आज मातम करूं तो कैसे उन बिखरे फूलों पर ..
कि ..मैंने तो उस मुखौटे से प्यार किया था ...
बच के रहिएगा आप भी ऐसे किसी मुखौटे से
जो संग चले आपके .. पर मकसद एक न हों ..
आपके ज़हन पर छा जाए एक बादल कि तरह
पर उसके मनसूबे और इरादे नेक ना हों ..
आप भी न वह पछतावा करें जो मैंने कभी किया था ..
जुबान से न कभी यह निकले
कि ..मैंने तो उस मुखौटे से प्यार किया था ...
मुझे वह सफर मंजिल सा लगने लगा
हम एक दूसरे से कितना मिलते थे .
उससे आँखें हटाना मुश्किल सा लगने लगा
कितना जादू था उसकी बातों में ..
और तहजीब ऐसी जो सबको लुभा रही थी
मैं उसके बगल मैं बैठी
अपनी किस्मत पे इतरा रही थी ..
एक रोते बच्चे को उसने गोद में बैठाया
हर एक कोशिश कर उसको शांत कराया
खांसते हुए एक बाबा को अपनी बोतल से
सारा पानी पिला कितना पुण्य कमाया ..
बस जैसे जैसे चलती जा रही थी
मैं उस अनजाने की होती जा रही थी
एक फ़ैसला मन में कुछ कर लिया था
किसी जज्बे की हिमायती हुयी जा रही थी
मेरा सफर अब खत्म हो चुका था ..
उतरी इस खयाल से की ज़रूर
पीछे से कोई आवाज़ आएगी ..
पता चाहता हूँ आपका ..कहेगा ,
..कि मुझे आपकी याद बहुत आएगी
मेरा अंदाजा ग़लत था ..
मैं थकी चाल से चलने लगी थी
धूल उड़ा कर मेरे चेहरे पे
वह बस अब बोझिल होने लगी थी
रात उसी के ख्यालों में बीती
आँखें सुबह उठी तो गीली थी
उसका चेहरा याद आ रहा था ..
दिल उसकी तरफ़ भागा जा रहा था .
फिर एक ख़बर पढी
अखबार पर जब नज़र पढी
कल एक बस में विस्फोट हुआ
मेरी आखों में जैसे अँधेरा छाया !
कल बैठे कई मित्र बने थे
आज .. सब खत्म हो चुके थे
हुलिया जो उसका उस कागज़ पे ज़िक्र हुआ था
यही जाना कि मेरा शख्स एक 'मानव -बम ' था
ले गया अपने संग कितने प्राणों को ..
अब जाना .. क्यों मुझे ज़िंदगी पुकारा था ..
उसने अपना यह बदनुमा और ज़ुल्मी पहलू
मेरी नज़रों से किस तरह बचा रखा था
मैं आज मातम करूं तो कैसे उन बिखरे फूलों पर ..
कि ..मैंने तो उस मुखौटे से प्यार किया था ...
बच के रहिएगा आप भी ऐसे किसी मुखौटे से
जो संग चले आपके .. पर मकसद एक न हों ..
आपके ज़हन पर छा जाए एक बादल कि तरह
पर उसके मनसूबे और इरादे नेक ना हों ..
आप भी न वह पछतावा करें जो मैंने कभी किया था ..
जुबान से न कभी यह निकले
कि ..मैंने तो उस मुखौटे से प्यार किया था ...
2 comments:
"मैं आज मातम करूं तो कैसे उन बिखरे फूलों पर ..
कि ..मैंने तो उस मुखौटे से प्यार किया था ..."
बहुत ही भावात्मक पर प्रासंगिक रचना है आपकी.
आतंकवाद के मुखौटे को नए सिरे से बेनक़ाब किया है आपने.
आपने जिन्दगी की इस सचाई से परिचय कराया -
जो अच्छा लगे वो उसका मुखौटा हो सकता है
दिल जो कहता है वो असल मैं धोका हो सकता है
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