Tuesday, November 27, 2007

.. और मैं जीती गयी


प्यास लगी और पानी सामने मिला
बुझाई तो मैंने , लेकिन
अरमान पूरे हुए कुछ इस तरह
कि ..समंदर खारा ही मिला
और मैं पीती गयी , और मैं जीती गयी .

दिल लगा और दिलबर का संग मिला
मुकाम हुआ मेरा ,लेकिन
अरमान पूरे हुए कुछ इस तरह
कि.. मकान खाली ही मिला
और मैं रहती गयी ,और मैं जीती गयी

थकान हुयी और पलंग मिला
नींद आ गयी ,लेकिन
अरमान पूरे हुए कुछ इस तरह
कि ..अलग जहाँ होता गया
और मैं सोती गयी , और मैं जीती गयी

शायरी सूझी और लव्ह -ओ -कलम मिला
लिखा बहुत कुछ , लेकिन
अरमान पूरे हुए कुछ इस तरह
कि ..माहौल ग़मगीन बन गया
और मैं लिखती गयी , और मैं जीती गयी



1 comment:

डाॅ रामजी गिरि said...

कि ..समंदर खारा ही मिला
और मैं पीती गयी , और मैं जीती गयी

ऐसा ज़ज़्बा हो तो आप क्या नही जीत जाएगी!!!!इतनी आशावादी रचना के लिए बधाई.