
जब जब मेरे कलम की स्याही बनी टीस,
मेरे ज़ख्मों की दवाई बनी टीस
जब जब मेरे हूक -ऐ -हलक की आह बनी टीस,
मेरी खामोशी की वजह बनी टीस
जब जब मेरी एक बेनूर परछाई बनी टीस,
वहीं एक ताबिंदगी दिखती बनी टीस
जब जब मेरी करवटों की रात बनी टीस,
सुबह सलवटों में बन कर मिटी टीस
जब जब अश्कों में काजल घुल कर गुजरी टीस,
हर रंजो ग़म को स्याह कर .. बिसरी टीस ।
मेरे ज़ख्मों की दवाई बनी टीस
जब जब मेरे हूक -ऐ -हलक की आह बनी टीस,
मेरी खामोशी की वजह बनी टीस
जब जब मेरी एक बेनूर परछाई बनी टीस,
वहीं एक ताबिंदगी दिखती बनी टीस
जब जब मेरी करवटों की रात बनी टीस,
सुबह सलवटों में बन कर मिटी टीस
जब जब अश्कों में काजल घुल कर गुजरी टीस,
हर रंजो ग़म को स्याह कर .. बिसरी टीस ।
4 comments:
Pragtiji.
Aapki sabhi rachnaye padhee .Ek akelapan hai ,ek dard hai,kuch narajgee hai .Aapne bhavnao ko khubsurtee se shabdoo mein dhala hai.Now try to look at brighter face of light.Charo taraf ujaalaa bikhar jayegaa.Phir koi tees nahi hogee.
Don't take it amiss.Keep it up.
टीस की को कविता के धागे में प्रो दिया आपने, वाह|
प्रो = पिरो
जब जब मेरे कलम की स्याही बनी टीस,
मेरे ज़ख्मों की दवाई बनी टीस
जब जब मेरे हूक -ऐ -हलक की आह बनी टीस,
मेरी खामोशी की वजह बनी टीस
बहुत सुंदर रचना ...........
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