Thursday, August 23, 2007

एक फलसफा



अनजाने ग़र खडें हों हर तरफ़ तेरे

तो तनहाई ही को तू गले लगा ले ,

मजबूरियां तेरी राहों में आयें तो
उन्हें अपना शौक बना ले ॥

ख्वाब टूटें बार - बार गर तो
उन्हें बस पानी बनाकर आंखों से बहा दे ,

अक्स ही गर तेरा तुझसे सवाल करे तो
आइना दिन -रात देखना भुला दे ॥

तेरा मीत गर ज़ख्मों से तुझे नवाज़े
तो तू इस दर्द को ही एक दवा बना ले ,

लफ्ज़ गर लड़ खड़ाये जब भी नाकामी पे तेरे ,
तो खामोशी अपनी जुबां बना ले ॥

रौशनी पर भी गर तू आगे न बढ़े
तो अपनी परछाई को सहारा बना ले ,

नहीं खत्म होगा यह सफर तेरा
तू हर मस्लक पर एक खेमा बिछा ले ..



1 comment:

Anonymous said...

ख्वाब टूटें बार - बार गर तो
रौशनी पर भी गर तू आगे न बढ़े
तो अपनी परछाई को सहारा बना ले ,
i have no words,so deep meaning,so good,inspirational peom it is.
:)
keep it up