Friday, August 24, 2007

कभी देखो ना ..



सुबह अधखुली पलकों को ,
बिस्तर की अनगिनत सलवटों को
सोने के कितने ही बहानो को ,
तुमको तलाशती उन नज़रों को ....
कभी देखो न ...

धुले भीगे बालों को ,
मेंहदी से सजे हाथों को
काजल से भरे उन नैनों को
सुर्ख रेशम उन होंठों को ..
कभी देखो न ...

बोलती खामोशियों को ,
गूंजती सरगोशियों को
अधूरी मुस्कुराहटों को ,
भर आई उन आंखों को ...
कभी देखो न ...

उन पिघलती रातों को ,
अनगिनत ताल्लुकातों को
कितनी हयाज़ात नज़रों को
उन बेबाक अफसानों को ...
कभी देखो न ...

जाने कितने ..ख्वाबों को
धड़कती हुयी आहों को
तुम पर मिटती सासों को
अनदेखी पर मुनासिब मंजिलों को ...
कभी देखो न ...

इन हसीं नज़दीकियों को ..
लम्हों की गुज़ारिशों को ..
दिल की दिल से बातों को ..
नज़रों की ज़ुबानो को ..
कभी देखो न ......

मेरा हुस्नोशबाब तो तुम्हारी अमानत है ..उसे क्या देखोगे
मेरी हाँ सुनना तो तुम्हारी आदत है ..उसे क्या पूछोगे
हर नज़र तो मुझ पर इनायत है ..अब किस नज़र देखोगे
गुलाबों को भी तेरी हिदायत है ..अब उनमे क्या पाओगे ...........

कभी देखो न ...
तुमसे खिले रूप के इन रंगों को ..
अनकहे मेरे कुछ सवालों को ...
शोख नज़रों की इनायतों को ...
पहले गुलाब की पंखुरियों को ...
कभी देखो न ..






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