Friday, August 24, 2007

अंदाज़




मेरी हंसी पे मत जाना ए दोस्त
हमने गम छुपाने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं ॥

मेरी आहों को तू साँस मत समझ
हमने जिए जाने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं ॥

मेरी पलकों की हलचल को ऐसे मत देख
हमने अश्क पोछने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं ..

मेरी धड़कन को तू सुना न कर
हमने तेरा नाम लेने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं ॥

मेरी नब्ज़ थामकर तू क्या गिनता है
मने तेरी छुअन पाने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं ॥

मेरा चेहरा ढक कर तू अब चला जा ॥
हमने नींद लेने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं ..

1 comment:

डाॅ रामजी गिरि said...

"मेरा चेहरा ढक कर तू अब चला जा ॥
हमने नींद लेने के अंदाज़ महज़ बदल दिए हैं .."

सुन्दर लेखनी है आपकी प्रगति .
प्यार और विछोह को बखूबी उकेरती हैं आप.

पर हम तो कहेंगे कि किसी से इतना मत रूठिये. कभी मिल जाए किसी मोड़ पर ,
तो कम-से-कम दुआ -सलाम हो पाए !!!