
सिर पर है आस्मान और पाँव तले ज़मीन है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
आंधी भी अब आती नही ,तेज़ बारिश भी थमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
हर तरफ़ एक ठंडक है ,बर्फ भी अब तक जमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
फूल बिखरे हैं चार्सू रह भी रेशमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
धूप कड़कती गुम है , और रोशन अपनी अस्मि है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
फितरत ही है ऐसी तेरी क्योंकि .. तू एक आदमी है ,शायद. .
इसलिए लगता है पल पल तुझे जैसे कुछ कमी है .........
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
आंधी भी अब आती नही ,तेज़ बारिश भी थमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
हर तरफ़ एक ठंडक है ,बर्फ भी अब तक जमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
फूल बिखरे हैं चार्सू रह भी रेशमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
धूप कड़कती गुम है , और रोशन अपनी अस्मि है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥
फितरत ही है ऐसी तेरी क्योंकि .. तू एक आदमी है ,शायद. .
इसलिए लगता है पल पल तुझे जैसे कुछ कमी है .........
No comments:
Post a Comment