Friday, August 24, 2007

कुछ कमी है


सिर पर है आस्मान और पाँव तले ज़मीन है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥

आंधी भी अब आती नही ,तेज़ बारिश भी थमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥

हर तरफ़ एक ठंडक है ,बर्फ भी अब तक जमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥

फूल बिखरे हैं चार्सू रह भी रेशमी है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥

धूप कड़कती गुम है , और रोशन अपनी अस्मि है ,
फिर भी लगता है जानेक्यों जैसे कुछ कमी है ॥

फितरत ही है ऐसी तेरी क्योंकि .. तू एक आदमी है ,शायद. .
इसलिए लगता है पल पल तुझे जैसे कुछ कमी है .........

No comments: