Friday, August 24, 2007

जिन्दगी से जो नाता था..




ना मुझे उससे कुछ देने को रहा
ना उससे मुझे कुछ देने को रहा ..
जिन्दगी से जो नाता था वोह भी टूट गया ..

ना वोह मुझे कभी पहचान पाया
ना में उसे कभी जान पाया ..
आईने में वोह चेहरा दिलनशीं ना रहा ..
जिन्दगी से जो नाता था ....

वादा क्या ख़ूब तुमने भी निभाया ,
कस्मों की खातिर मैंने अपनों को भुलाया
तमाम हकीकातों को पल में झूठ किया ..
जिन्दगी से जो नाता था वोह भी टूट गया ..

ना मैं कभी उसके घर में जा सका
ना वोह कभी मेरे आशियें में आ सका
एक ठिकाना था , जो नशेमन ना बन सका ..
जिन्दगी से जो नाता था ...

यारी वोह कभी भी ना निभा सका ..
दोस्ती में भी कायम ना रख सका ..
दिल ही एक आशना था , संगदिल वोह भी रूठ गया ..
जिन्दगी से जो नाता था वोह भी टूट गया ..

जवाब तुम्हारे पास ना देने को रहा ,
सवाल मेरे पास भी ना पूछने को रहा ..
रुसवा हुए बेंतेहा हम ,शहर भी फिर छूट गया ॥

जिन्दगी से जो नाता था वोह भी टूट गया .

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