Thursday, September 6, 2007

मेरी मिट्टी ही अलग है..


एक अडियल वृक्ष जैसे बन चुकी हूँ मैं
ज़मीन में दूर तक समां चुकी हूँ मैं


जिस घर की मैं पचीस बरसों तक छांव बनी॥
उस आंगन से अस्तित्व अलग होता हुआ और
ख़ुद को उखडता हुआ देखना , मुझे गवारा नहीं.........

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