Wednesday, October 31, 2007

एक सोच


तारे हैं कम .. या दामन ही छोटा हो चला है
वक्त नहीं कटता या दिन ही बड़ा हो चला है

पाँव नहीं थकते .. या पड़ाव ही पास हो गया है
अभी शाम नहीं हुयी या घर ही दूर हो गया है

तन्हाई आस पास है.. या इक साथी ही मिल चुका है
आँखें बंद न होवें, या मेरा चैन ही खो गया है

हकीक़त अब सामने है ..या परदा ही उठ गया है
कलम अब खाली है या एहसास ही सो गया है..

Tuesday, October 30, 2007

चाँद का दर्द


चेहरे पे एक अमिट दाग़ का निशाँ
नसीब में मेरे अँधेरा सिर्फ रात का .
मेरा कोई मुक़र्रर रूप नहीं किया
रौशनी के लिए भी.. मोहताज किया..
क्यों पूजती हो मुझे.. ?
अपने प्रेम की लम्बी उम्र के लिए .
जब मैं अपनी ही चांदनी का ,
कभी मुहाफिज़ न हो सका..

Monday, October 1, 2007

ऐसा कभी आसमा ही नहीं मिला


ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
जिसकी छत से तारों को देखना सकूं ऐसा कभी मकान ही नहीं मिला ..

घर महका हो जिसके आने पर ऐसा कभी मेहमान ही नहीं मिला ...

ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..

दिल बहला सके मेरा जो तनहाई में ऐसा कोई साजोसामान ही नहीं मिला ।

ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..

रूह तक मेरे जो शामिल हो जाये ऐसा कोई फ़रहान ' ही नहीं मिला
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..