ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
जिसकी छत से तारों को देखना सकूं ऐसा कभी मकान ही नहीं मिला ..
घर महका हो जिसके आने पर ऐसा कभी मेहमान ही नहीं मिला ...
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
दिल बहला सके मेरा जो तनहाई में ऐसा कोई साजोसामान ही नहीं मिला ।
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
रूह तक मेरे जो शामिल हो जाये ऐसा कोई फ़रहान ' ही नहीं मिला
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
जिसकी छत से तारों को देखना सकूं ऐसा कभी मकान ही नहीं मिला ..
घर महका हो जिसके आने पर ऐसा कभी मेहमान ही नहीं मिला ...
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
दिल बहला सके मेरा जो तनहाई में ऐसा कोई साजोसामान ही नहीं मिला ।
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
रूह तक मेरे जो शामिल हो जाये ऐसा कोई फ़रहान ' ही नहीं मिला
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
3 comments:
सुंदर!!
बढ़िया लिखती हैं आप!!
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शुभकामनाएं।
रूह तक मेरे जो शामिल हो जाये ऐसा कोई फ़रहान ' ही नहीं मिला
ख्वायिशें ढ़ेर सारी संजो सकूं ऐसा कभी आसमान ही नहीं मिला ..
अकेलेपन के दर्द को बयां करती खूबसूरत रचना है आपकी.
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