
लाखों परिंदों को देखूं गर इस शहर में ..
ज़रूरी नहीं कि हर पंख आज़ाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
दूर तक फैली इन घनी भरी आबादियों में
ज़रूरी नहीं कि हर जान आबाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि दफा दाद मिले ..
हमसफ़र ढूँढती हूँ मैं जो इस तिशनगी में
ज़रूरी नहीं कि एक दिन वो दिलशाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
सोच रही हूँ जो बसाने महल मैं उम्मीदों का
ज़रूरी नहीं कि एक दर्हकीकत बुनयाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
वजूद पर करेंगे सारे सवाल मेरे अपने ही
ज़रूरी नहीं कि जवाब उन्हें मेरे बाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
ज़रूरी नहीं कि हर पंख आज़ाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
दूर तक फैली इन घनी भरी आबादियों में
ज़रूरी नहीं कि हर जान आबाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि दफा दाद मिले ..
हमसफ़र ढूँढती हूँ मैं जो इस तिशनगी में
ज़रूरी नहीं कि एक दिन वो दिलशाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
सोच रही हूँ जो बसाने महल मैं उम्मीदों का
ज़रूरी नहीं कि एक दर्हकीकत बुनयाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
वजूद पर करेंगे सारे सवाल मेरे अपने ही
ज़रूरी नहीं कि जवाब उन्हें मेरे बाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
2 comments:
हमसफ़र ढूँढती हूँ मैं जो इस तिशनगी में
ज़रूरी नहीं कि एक दिन वो दिलशाद मिले .
लिखूं जब ज़ख्मों को हवा देने के लिए मैं
ज़रूरी नहीं कि हर दफा दाद मिले ..
I wanna say dat--
तलाश की शिद्दत बनाए रखिए
आरज़ू मे दिल की बन्दगी कीजिए
दिलशाद तो क्या
खुदा भी मिल जाएगा .
bahut accha likha hai.......
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