चेहरे पे एक अमिट दाग़ का निशाँ
नसीब में मेरे अँधेरा सिर्फ रात का .
मेरा कोई मुक़र्रर रूप नहीं किया
रौशनी के लिए भी.. मोहताज किया..
क्यों पूजती हो मुझे.. ?
अपने प्रेम की लम्बी उम्र के लिए .
जब मैं अपनी ही चांदनी का ,
कभी मुहाफिज़ न हो सका..
नसीब में मेरे अँधेरा सिर्फ रात का .
मेरा कोई मुक़र्रर रूप नहीं किया
रौशनी के लिए भी.. मोहताज किया..
क्यों पूजती हो मुझे.. ?
अपने प्रेम की लम्बी उम्र के लिए .
जब मैं अपनी ही चांदनी का ,
कभी मुहाफिज़ न हो सका..
1 comment:
very gud keep it up dost.
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