
एक सांस से दूसरी सांस जहाँ तुमने जोडी उस फसेलाह में मुझे कभी देखो ना
पलकों की झपक से दूसरी झपक के उस हर एक लहेजाह में मुझे कभी देखो ना
धड़कन की मद्धम सरगम में रंगी हर इक गिरह में मुझे कभी देखो ना
जिस्म की हर हलचल और रगों में दौडते हर कतरे में मुझे कभी ना
लिखा तुमने जिससे मजबूर होके आज तक , उस आशिकानाह में मुझे कभी देखो ना
साहिल से टकराकर वापस सागर को लौटती उस लहर लहर में मुझे कभी देखो ना
तराजू के उस मजबूर कांटे में उलझी दर गुज़र में मुझे कभी देखो ना
काजल घुलकर जो रुखसार पे बिखर गया ,उस ख्वायिश की सूखते शराबोरों में मुझे कभी देखो ना
फिर अपने जिस रुमाल से उसको पोंछा उसके रेशों में बाक़ी एक दाग में मुझे कभी देखो ना
सामने होकर भी तुम कितने धुंधले दिखते हो नम आखों से देखती हूँ जब भी ,तुम मुझे अपने लगते हो
पथराई आंखों में उफनते कई एक सैलाबों में मुझे कभी देखो ना ..जो कभी दर्मन्दाह ना होंगी उन नज़रों निगाहों में मुझे कभी देखो ना
इश्क से वाबस्ता जो चश्म है तुम्हारी , उस नज़र की बेबाकी को कभी देखो ना
जो खुद में एक खुदा पोशीदा है उसकी अल्ताफे खुदाई को कभी देखो ना